डाकिया की भटकती आत्मा - एक सच्ची भयावह कहानी

नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम विकास वर्मा है। मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ और एक हॉरर लेखक हूँ। जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वह मेरी ज़िंदगी की सबसे भयानक और रहस्यमयी रात की कहानी है। यह घटना आज भी मेरी रूह कंपा देती है। अगर आप कमजोर दिल के हैं, तो इसे अकेले न पढ़ें...

एक डरावनी यात्रा की शुरुआत

दो साल पहले, मैं अपनी नई हॉरर कहानी के लिए एक शांत और रहस्यमयी जगह की तलाश कर रहा था। खोजते-खोजते मैं राजस्थान के कोटा शहर के पास एक छोटे से गाँव में पहुँचा। शाम के करीब छह बज रहे थे, जब मैंने गाँव में कदम रखा। मगर जैसे ही वहाँ के लोगों ने मुझे देखा, उन्होंने बिना कुछ कहे अपनी खिड़कियाँ और दरवाजे बंद कर लिए। ऐसा लगा जैसे वे मुझसे डर रहे हों... या शायद किसी अनजान खतरे से

थोड़ी देर तक मैं इधर-उधर भटकता रहा और एक घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। थककर मैं एक पुराने, सूखे पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी मेरी नज़र ऊपर गई और मैं सिहर उठा— एक काली बिल्ली मुझे घूर रही थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह मुझे पहचानती हो। अचानक वह बिल्ली मुझ पर झपटी और मेरी गर्दन पर अपने नुकीले दाँत गड़ा दिए! मैं चीख पड़ा, लेकिन जैसे ही मैंने उसे दूर किया, वह गायब हो गई

रहस्यमयी डाकिया और उसका खाली घर

तभी एक अजनबी डाकिया वहाँ से गुज़र रहा था। उसने मुझे देखा और कहा, "यहाँ रात को कोई बाहर नहीं रहता। अगर तुम चाहो तो मेरे पुराने घर में ठहर सकते हो। अब मैं इस गाँव में नहीं रहता, इसलिए वह घर खाली पड़ा है।"

उसकी आवाज़ में कुछ अजीब था, लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। मैंने झट से चाबी ली और घर के अंदर चला गया। वह घर बहुत अंधेरा और डरावना था, जैसे वहाँ किसी की मौजूदगी हो। लेकिन मैं अपनी कहानी पर काम करने के लिए लैपटॉप निकालकर बैठ गया।

मौत का मंजर

रात के करीब 12 बजे, खिड़की से बाहर झाँका तो मेरी साँसें थम गईं— दो लड़के एक लड़की को जबरदस्ती पेड़ की ओर ले जा रहे थे। उनकी आँखों में कोई दया नहीं थी, और उस लड़की की चीखें दिल दहला देने वाली थीं। अगले ही पल, उन्होंने उस लड़की को पेड़ से लटका दिया!

मेरे रोंगटे खड़े हो गए। यह सब देखकर मैं तेजी से बाहर भागा, लेकिन जैसे ही मैंने नज़र घुमाई— वहाँ कोई नहीं था!

तभी मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरी ओर देख रहा है। मैंने ऊपर देखा, तो डाकिये के घर की छत पर वही लड़की, वे दोनों लड़के, और वह काली बिल्ली बैठे थे! उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी और उनके चेहरे पर एक भयानक हँसी थी। चारों ओर कुत्तों के रोने और रहस्यमयी फुसफुसाहटों की आवाज़ें गूंज रही थीं। मेरा शरीर ठंडा पड़ गया और मैं बेहोश होकर गिर पड़ा।

सुबह का खौफ

जब मेरी आँख खुली, तो मैं उसी घर के अंदर था, लेकिन अब सब कुछ अजीब रूप से शांत था। मैं लड़खड़ाते हुए बाहर निकला और देखा— पूरा गाँव खाली था!

डर के मारे मैं वापस डाकिये के घर गया। अंदर जाते ही मेरी नज़र दीवार पर डाकिये की तस्वीर पर पड़ी— और यह देखकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। तस्वीर पर हार चढ़ा हुआ था!

जब मैंने ध्यान से देखा, तो उसकी मृत्यु की तारीख चार साल पहले की थी!

भयानक सच

डर और सदमे में, मैं वहाँ से भागा और गाँव के बाहर एक चाय की दुकान पर पहुँचा। जब मैंने दुकानदार को यह सब बताया, तो उसने जो कहा, वह मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उसने बताया—

"वो डाकिया और उसकी बेटी को दो लड़कों ने बेरहमी से मार डाला था। उनकी आत्माएँ आज भी भटक रही हैं। इसी कारण गाँव के लोग रात होते ही गायब हो जाते हैं और सुबह फिर से दिखने लगते हैं। मगर असलियत यह है कि यह गाँव अब सिर्फ आत्माओं का बसेरा है।"

यह सुनकर मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। मैं तेजी से वहाँ से भागा और कसम खाई कि फिर कभी इस गाँव की तरफ नहीं जाऊँगा

आज भी जब मैं इस घटना को याद करता हूँ, तो मेरी रूह काँप उठती है। अगर आप कभी किसी अजनबी जगह जाएँ, तो ज़रा सावधान रहें... कौन जाने, आप किसके साथ रात बिता रहे हैं!


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