आखिरी सफ़र
 - एक सच्ची कहानी

मेरा नाम करण कुमार है, और आज मैं आपको एक ऐसी सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी। यह कहानी सिर्फ़ एक सफर की नहीं, बल्कि मौत के खौफनाक खेल की है।

अक्षय, गोपाल, राजू, रश्मि और कीर्ति – ये पाँच गहरे दोस्त थे। कॉलेज खत्म होने से पहले इन्होंने फैसला किया कि वे कहीं घूमने जाएंगे। रश्मि और अक्षय को भूतिया जगहों पर जाने का शौक था। रश्मि ने एक गांव के बारे में बताया जहाँ एक खतरनाक जंगल था, और उस जंगल के बीच में एक भुतहा कब्रिस्तान था। वहाँ के लोग कहते थे कि जो भी उस जंगल में गया, वह कभी लौटकर नहीं आया।

गोपाल इस बात से बेहद डर गया, लेकिन बाकी सब रोमांचित थे। काफी मनाने के बाद गोपाल भी मान गया। अगली सुबह, वे सभी रश्मि के पड़ोसी के यहाँ रुके और फिर गाँव में घूमने लगे। गाँव के लोग उनसे बार-बार कह रहे थे – "उस जंगल में मत जाना... वहाँ सिर्फ़ मौत रहती है!" लेकिन ये बातें उनके जोश को कम नहीं कर पाईं।

रात होने का इंतजार किया गया। आधी रात को, टॉर्च और कुछ खाने का सामान लेकर वे जंगल की ओर बढ़ चले। चारों ओर गहरा सन्नाटा था, बस दूर कहीं उल्लू की आवाज़ सुनाई दे रही थी। जैसे ही वे जंगल में पहुँचे, रास्ते में उन्हें एक पुराना लकड़ी का बक्सा मिला।

अक्षय ने जिज्ञासावश बक्सा खोलने की कोशिश की, तभी उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी कलाई पकड़ ली हो। अचानक वह ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा – "अरे, मैं मजाक कर रहा था!" सबने चैन की सांस ली और आगे बढ़ गए। लेकिन यह महज़ एक शुरुआत थी।

वे जंगल के बीचों-बीच पहुँच गए और वहीं बैठकर बातें करने लगे। तभी रश्मि को एक भयानक विचार आया – "क्यों न हम आत्माओं को बुलाने की कोशिश करें?" गोपाल और कीर्ति ने विरोध किया, लेकिन अक्षय और रश्मि ने उनकी बात अनसुनी कर दी।

अचानक, हवा तेज़ चलने लगी, और अजीब-अजीब सी आवाजें आने लगीं। लगा जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। तभी एक सूखा पेड़ गिरा, जिस पर कई इंसानी कंकाल लटके हुए थे! यह देखकर वे सभी डर गए और भागने लगे।

जब वे जंगल के किनारे पहुँचे, तो एहसास हुआ कि गोपाल उनके साथ नहीं था। डर के बावजूद वे उसे खोजने वापस गए। चारों ओर खून की बूंदें बिखरी हुई थीं। तभी अचानक खून की एक बूंद राजू के हाथ पर गिरी। उसने ऊपर देखा – गोपाल का सिर पेड़ पर लटक रहा था, लेकिन उसका शरीर कहीं नहीं था!

इस भयानक दृश्य को देखकर वे पागलों की तरह भागने लगे, लेकिन जंगल का रास्ता कभी खत्म ही नहीं हो रहा था। वे चलते रहे, और अचानक उनके सामने एक पुरानी कब्र आ गई, जिस पर लिखा था – "यह तुम्हारी ज़िंदगी का आखिरी सफर है!"

अब उनकी हालत बद से बदतर हो गई थी। वे ज़ोर-ज़ोर से मदद के लिए चिल्लाने लगे, लेकिन चारों ओर सिर्फ़ सन्नाटा था। एक-एक कर सबकी आँख लग गई। आधी रात को कीर्ति को किसी के फुसफुसाने की आवाज़ सुनाई दी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे बुला रहा हो।

डरी-सहमी कीर्ति ने राजू को जगाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं उठा। मजबूरी में वह अकेले ही उस आवाज़ का पीछा करने लगी। कुछ दूर जाने पर उसने देखा – सफेद साड़ी में एक औरत हवा में तैर रही थी। उसका चेहरा एक सड़ी हुई लाश की तरह था।

कीर्ति के चीखने की आवाज़ से सब जाग गए। वे दौड़कर उसके पास पहुँचे, लेकिन वहाँ कीर्ति नहीं थी। वे उसे ढूँढने लगे और आखिरकार उसे एक कब्र के पास पाया – उसका सिर कब्र पर रखा हुआ था, और उसका मुँह सिर्फ़ एक ही बात दोहरा रहा था – "यह तुम्हारा आखिरी सफर है!"

अब वे पूरी तरह टूट चुके थे। अक्षय बुरी तरह कांप रहा था, लेकिन उसने हिम्मत करके कब्रिस्तान के अंदर जाने का फैसला किया। वहाँ उसने एक अजीब घर देखा, जिसके अंदर इंसानों के कटे हुए सिर लटके हुए थे।

अचानक, एक बच्चा हंसता हुआ उसके सामने आया और भागने लगा। अक्षय ने उसका पीछा किया, लेकिन बच्चा अचानक गायब हो गया। तभी कब्रिस्तान से एक हाथ निकला और उसने अक्षय को अंदर खींच लिया।

रश्मि और राजू उसे खोजने कब्रिस्तान पहुँचे। वे एक कब्र के पास रुके और वहाँ एक पुरानी चिट्ठी पड़ी थी, जिस पर लिखा था – "यह तुम्हारी ज़िंदगी का आखिरी सफर है!"

जैसे ही उन्होंने वह चिट्ठी पढ़ी, उनकी टॉर्च बुझ गई। अंधेरा घना हो गया। अचानक कब्र का दरवाजा बंद होने लगा, और भीतर से बच्चों की चीखें सुनाई देने लगीं।

सुबह, गाँव वालों को कब्र के ऊपर चार और कटे हुए सिर मिले, जो बस एक ही बात दोहरा रहे थे – "यह तुम्हारा आखिरी सफर है!"

इस घटना के बाद, कोई भी उस जंगल की तरफ़ जाने की हिम्मत नहीं करता। कहते हैं, जो भी वहाँ जाता है, वह वापस नहीं आता। और जो लौटने की कोशिश करता है, वह मौत के मुंह में समा जाता है।


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