गाँव की नदी में सोनिया का भूत - एक सच्ची कहानी
मेरा नाम सोनू सिंह है, और मैं हरियाणा का रहने वाला हूँ। मैं आपको अपनी ज़िन्दगी की सबसे भयानक और सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ, जो आज भी मेरी रूह को कंपा देती है। अगर आपका दिल कमजोर है, तो आगे मत पढ़ना... क्योंकि जो कुछ मैं बताने जा रहा हूँ, वो आपको रातों को सोने नहीं देगा।
ये घटना करीब दो महीने पहले की है। मैं शहर में पढ़ाई करने के बाद अपने गाँव लौटा था और वहाँ रहते हुए एक हफ्ता ही हुआ था कि अचानक गाँव में एक सनसनीखेज खबर फैली—गाँव की नदी के पास एक लाश पड़ी थी। पूरे गाँव में खलबली मच गई। जब मैंने इस बारे में अपने दोस्तों से पूछा, तो उन्होंने बताया कि ये कोई आम घटना नहीं थी। ये सब सोनिया के भूत का काम था, जो तीन महीने पहले इसी नदी में मरी थी।
मेरे दोस्त ने बताया कि जो भी शाम को उस नदी के पास जाता है, वो जिंदा वापस नहीं आता। या तो वो गायब हो जाता है या फिर उसकी लाश मिलती है—कभी आँखें बाहर निकली हुई, कभी गर्दन मुड़ी हुई, कभी जिस्म अधजला। यह सुनकर मेरी हँसी छूट गई। मैं भूत-प्रेत में यकीन नहीं करता था, इसलिए मैंने ठान लिया कि मैं खुद जाकर इस सच का पता लगाऊँगा।
डरावनी रात का आग़ाज़
उस दिन रात होने का इंतज़ार किया। जैसे ही अंधेरा घिरा, मैं बिना किसी को बताए नदी की ओर चल पड़ा। हवा में अजीब-सी सिहरन थी, जैसे कोई अदृश्य साया मेरे पीछे-पीछे चल रहा हो। रास्ते के पेड़ अंधेरे में किसी कंकाल की तरह लग रहे थे, और हर कदम के साथ मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी।
नदी के पास पहुँचकर मैंने इधर-उधर नजर दौड़ाई, लेकिन वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं लगा। मैं मुड़कर वापस जाने लगा, तभी... अचानक मेरे कानों में एक औरत के सुबकने की आवाज़ आई।
आवाज़ सुनकर मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। मैं धीरे-धीरे उस दिशा में बढ़ा, जहाँ से आवाज़ आ रही थी। जैसे ही मैंने पास जाकर देखा, मेरा खून जम गया।
नदी के किनारे एक औरत बैठी थी, उसके लंबे उलझे बाल चेहरे पर लटके हुए थे, और वह फूट-फूटकर रो रही थी। लेकिन... उसकी परछाईं पानी में नहीं थी! मेरे होश उड़ गए।
भयानक मंजर
मैंने काँपती आवाज़ में पूछा, "तुम कौन हो?"
जैसे ही उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया, मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसकी आँखें सुर्ख लाल थीं, होंठों से काला खून टपक रहा था, और उसकी खोपड़ी आधी सड़ चुकी थी।
फिर वह खौफनाक आवाज़ में हँसते हुए बोली, "मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी...!!"
उसकी बातें सुनकर मेरे पैर जड़ हो गए। वह धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ने लगी। अचानक उसकी गर्दन एक तरफ़ से लटक गई, जैसे हड्डियाँ टूट चुकी हों। उसके पैर ज़मीन से कुछ इंच ऊपर उठ गए, और वह हवा में तैरने लगी।
मौत की ओर बढ़ते कदम
उसने मेरे हाथ पकड़ लिए। उसकी पकड़ इतनी ठंडी थी कि मेरी उंगलियाँ सुन्न हो गईं। मेरे कानों में अजीब-सी फुसफुसाहट गूँजने लगी—"तुम भी वैसे ही मरोगे, जैसे मैंने मरे थे... तड़प-तड़प कर, बिलकुल अकेले!"
मैंने भागने की कोशिश की, लेकिन मेरे पैर वहीं जम गए। मेरे शरीर में कोई ताकत नहीं बची थी।
रहस्यमयी साधु का प्रकट होना
तभी, अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ आई, "पापी आत्मा, तेरा अंत निकट है!"
एक साधु न जाने कहाँ से प्रकट हुआ और उसने हाथ में मौजूद गंगाजल उस भूतनी पर छिड़क दिया। वह जोर-जोर से चीखने लगी, उसकी खाल जलने लगी, और उसका पूरा शरीर राख में बदलने लगा। लेकिन... मरने से पहले उसने मेरी तरफ देखा और फुसफुसाई, "मैं वापस आऊँगी... और इस बार तुम बच नहीं पाओगे!"
आज भी सताता है वो खौफ
उस रात के बाद मैं कई दिनों तक बुखार में पड़ा रहा। लेकिन जो चीज़ मुझे सबसे ज्यादा डराती है, वो है मेरी खिड़की के बाहर सुनाई देने वाली हल्की-सी हंसी... बिल्कुल वैसी ही, जैसी उस रात नदी किनारे सुनी थी।
अब भी गाँव के लोग शाम होते ही नदी के पास जाने से डरते हैं... और मैं? मैं कभी उस नदी के पास नहीं गया... और शायद जिंदा रहते कभी जाऊँगा भी नहीं।
अगर आप भी किसी सुनसान जगह पर अकेले जाते हैं, तो सावधान रहिए… कौन जानता है, वहाँ कौन आपका इंतज़ार कर रहा हो!
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