डायन का बदला - एक सच्ची कहानी
(शान रावत की आवाज़ में प्रस्तुत)
गहरी काली रात, आसमान में टिमटिमाते तारों के बीच एक बड़ा सा चमकता चाँद और चारों तरफ़ फैला भयानक सन्नाटा। हवाएं सरसराती हुई पेड़ों के पत्तों को डरावने सुरों में हिला रही थीं। जगह थी – चंद्रपुर, एक छोटा सा गांव, जो अपनी खूबसूरती के साथ-साथ डरावनी कहानियों के लिए भी मशहूर था। लेकिन सबसे डरावनी कहानी जो हर गांववाले की ज़ुबान पर थी, वो थी – डायन का बदला!
गांव का श्राप
कहते हैं, यह गांव वर्षों पहले खुशहाल हुआ करता था। खेतों में फसलें लहलहाती थीं, नदियों में मीठा पानी बहता था और लोग बेखौफ अपनी ज़िंदगी जीते थे। लेकिन फिर एक दिन, कुछ ऐसा हुआ जिसने चंद्रपुर की किस्मत को हमेशा के लिए बदल दिया।
गांव में एक रूहानी नाम की लड़की रहती थी। उसकी सुंदरता का हर तरफ़ बखान था, लेकिन उसकी सबसे बड़ी गलती यही थी कि उसने ठाकुर प्रताप सिंह के गलत इरादों को ठुकरा दिया था।
प्रतिशोध की आग में जलते ठाकुर ने रूहानी पर डायन होने का झूठा आरोप लगाया। अंधविश्वास से ग्रस्त गांववालों ने ठाकुर का साथ दिया और बिना कुछ सोचे-समझे रूहानी को जिंदा आग में जला दिया। मरते-मरते उसने श्राप दिया,
"मेरी चीखें इस गांव की हवा में गूंजेंगी... मेरे आंसू इस ज़मीन से कभी नहीं सूखेंगे... मैं लौटूंगी, और तब हर वो इंसान जिसने मुझे जलते देखा, अपने पापों की सजा पाएगा!"
उसके जलते हुए शरीर से उठती लपटों ने आसमान तक पहुंचकर काली आंधी में बदल दी। गांव में उसी दिन से मौतों का सिलसिला शुरू हो गया।
डायन की वापसी
50 साल बाद, चंद्रपुर अब भी उस श्राप के डर से कांपता था। लोग कहते थे कि हर अमावस्या की रात रूहानी की आत्मा गांव में घूमती है। जिस किसी ने भी ठाकुर के परिवार से संबंध रखा, वो एक न एक दिन रहस्यमय मौत का शिकार हो गया।
सबसे पहला शिकार हुआ ठाकुर प्रताप सिंह का पोता, अर्जुन सिंह। वो एक रात हवेली के सबसे ऊपरी कमरे में सो रहा था, जब अचानक पूरा घर उसकी चीखों से गूंज उठा। जब दरवाजा तोड़ा गया, तो अर्जुन का शरीर छत से उल्टा लटका हुआ था और दीवार पर खून से लिखा था – "मैं लौट आई हूँ!"
एक के बाद एक ठाकुर के परिवार के सभी लोग अजीबो-गरीब परिस्थितियों में मारे गए। कोई कुएं में गिरा मिला, तो किसी का शव जलते हुए खेतों में पड़ा मिला।
गांव के पुजारी पंडित रामलाल ने बताया कि यह रूहानी की आत्मा का बदला था। लेकिन एक अंतिम वंशज अब भी ज़िंदा था – करण प्रताप सिंह। और वो नहीं जानता था कि अगला नंबर उसी का था।
आखिरी बदला
करण प्रताप सिंह, जो अब गांव छोड़कर शहर में बस चुका था, यह सब अंधविश्वास मानता था। लेकिन एक दिन, उसे अपने पुराने महल में लौटना पड़ा। उसके पिता की बरसी थी, और उसे परिवार की अंतिम निशानी संजोकर रखनी थी।
रात होते ही हवेली में अजीब घटनाएं होने लगीं। कमरे के शीशों पर खून से उंगलियों के निशान दिखने लगे। अचानक से दरवाजे खुद-ब-खुद खुलने लगे। करण ने यह सब नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब उसने आइने में खुद को देखा तो पीछे लंबे बालों वाली, जली हुई आकृति खड़ी थी।
करण ने पलटकर देखा – कोई नहीं था।
लेकिन तभी एक धीमी और डरावनी आवाज़ गूंज उठी –
"करण... तुम्हारा वंश खत्म होने का समय आ गया है...!"
करण कांप उठा। तभी हवेली के बड़े झूमर से एक परछाईं उतरती दिखाई दी। उसकी आंखें जल रही थीं, उसके होंठों से काले धुएं के बादल निकल रहे थे। वो थी रूहानी की आत्मा!
"मुझे छोड़ दो!" करण चिल्लाया। लेकिन रूहानी ने हंसते हुए कहा,
"तुम्हारे पुरखों ने मेरी आत्मा को कष्ट दिया, अब मैं तुम्हारी आत्मा को भटकने पर मजबूर कर दूंगी!"
आसमान में बिजली कड़की, हवाएं बवंडर बनकर पूरे महल को हिला रही थीं। करण ने भागने की कोशिश की, लेकिन दरवाजे अपने आप बंद हो गए। तभी अचानक करण की चीखें हवेली में गूंज उठीं।
सुबह जब गांववालों ने आकर देखा, तो करण की लाश हवेली की सबसे ऊपरी मंजिल से लटकी हुई मिली। उसकी आंखें बाहर निकली हुई थीं और दीवार पर खून से लिखा था –
"बदला पूरा हुआ!"
उस रात के बाद...
गांव में कभी कोई अनहोनी नहीं हुई। लेकिन जब भी अमावस्या की रात होती है, लोग अब भी हवेली की टूटी खिड़कियों से किसी औरत की परछाईं को गुजरते देखते हैं।
कुछ कहते हैं, वो अब भी अपने दर्द को महसूस कर रही है... और कुछ कहते हैं कि शायद अब भी उसका बदला पूरा नहीं हुआ...
"अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी है तों हमें कोमेंट में जरुर बताएं और इस भूतिया कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करना ना भूले धन्यवाद।"
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