सुनसान सड़क का भूत - एक सच्ची कहानी
रात के सन्नाटे में जब चाँद बादलों के पीछे छिप जाता है और हवा भी किसी रहस्यमयी गीत की तरह गूंजने लगती है, तब कुछ अनदेखी शक्तियाँ जाग उठती हैं। यह कहानी है उत्तराखंड के घने जंगलों के बीच बनी एक सुनसान सड़क की, जिसे लोग 'शापित मार्ग' कहते हैं।
मैं हूँ हर्षवर्धन रावत, और आज मैं आपको उस रात की एक सच्ची घटना सुनाने जा रहा हूँ, जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए थे। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक भयावह अनुभव है, जो मैंने खुद महसूस किया था।
रात का सफर
उस रात मैं अपने दोस्त आदित्य के साथ एक एडवेंचर ट्रिप पर निकला था। हम अपनी गाड़ी से पहाड़ों के बीच से गुजरते हुए इस सुनसान सड़क पर पहुँचे। जगह-जगह सिर्फ बड़े-बड़े पेड़ और अजीब सी खामोशी थी। न कोई इंसान, न कोई गाड़ी, बस हम और वो रहस्यमयी रास्ता।
हमने सुना था कि यहाँ रात में सफेद साड़ी पहने एक औरत दिखाई देती है। पहले तो हमें यकीन नहीं हुआ, लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़े, माहौल अजीब होता गया। ठंडी हवा हमारे शरीर को छू रही थी, लेकिन यह ठंड आम नहीं थी। यह किसी की मौजूदगी का एहसास करा रही थी।
अचानक हमारी गाड़ी के सामने एक परछाई दिखी। सफेद कपड़ों में एक औरत खड़ी थी। उसका चेहरा झुका हुआ था और लंबे बाल हवा में लहरा रहे थे।
"भाई, ये क्या है?" आदित्य की आवाज़ कांप रही थी।
मैंने गाड़ी रोकी और धीरे-धीरे कैमरा ऑन किया। लेकिन जैसे ही कैमरे की रोशनी उस औरत पर पड़ी, उसने अपना चेहरा ऊपर उठा लिया। उसकी आँखें पूरी तरह काली थीं, और उसके होंठ से खून टपक रहा था।
हमारी चीखें गाड़ी के अंदर ही दब गईं। आदित्य ने कांपते हुए कहा, "चलो यहाँ से भागते हैं!"
मैंने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की और पूरी रफ्तार से वहाँ से निकलने लगा। लेकिन जैसे ही हम थोड़ी दूर पहुँचे, गाड़ी अचानक बंद हो गई। चारों ओर गहरा सन्नाटा था, सिर्फ हमारी साँसों की तेज़ आवाज़ सुनाई दे रही थी।
तभी हमारी गाड़ी के शीशे पर खरोंचने की आवाज़ आई। धीरे-धीरे एक हाथ दिखाई दिया – पतला, सफेद, और नाखून लंबे और खून से सने हुए।
मैंने देखा, वही औरत गाड़ी के बोनट पर बैठी थी। उसने झुककर शीशे के अंदर देखा और ज़ोर से चिल्लाई – एक ऐसी चीख जिसे सुनकर हमारी आत्मा काँप उठी।
"बचाओ!" आदित्य ने ज़ोर से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ भी कमज़ोर पड़ गई थी।
और फिर, अंधेरा छा गया।
सुबह का रहस्य
सुबह जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो हम सड़क के किनारे पड़े थे। गाड़ी वहाँ नहीं थी। हम दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।
"यहाँ हमारी गाड़ी कहाँ गई?" आदित्य ने कांपते हुए पूछा।
हम जैसे-तैसे पास के गाँव पहुँचे और वहाँ के लोगों को सारी बात बताई। गाँव के एक बुजुर्ग ने गहरी साँस ली और कहा, "तुम लोगों को नहीं आना चाहिए था। वह आत्मा अब भी इस सड़क पर भटक रही है। जिसने उसे देख लिया, वह कभी पूरी तरह बच नहीं पाया।"
आज भी, जब मैं उस रात के बारे में सोचता हूँ, मेरी रूह काँप उठती है। और हाँ, मेरी गाड़ी आज तक नहीं मिली। न जाने वो औरत कौन थी, कहाँ से आई थी और उसने हमें क्यों छोड़ा… लेकिन जब भी मैं रात में गाड़ी चलाता हूँ, ऐसा लगता है कि कोई मेरी पिछली सीट पर बैठा है।
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